कभी इश्क़ साज़-ए-हयात था कभी सोज़-ए-दिल ने जला दिया
कभी वस्ल में भी कसक रही कभी दर्द-ओ-ग़म ने भी मज़ा दिया
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ये ख़्वाबों के साए
वो हर्फ़-ओ-सौत-ओ-सदा
ख़्वाब तो ख़्वाब हैं पल भर में बिखर जाते हैं
जज़्बा-ए-बे-कराना
मौत
सिवा है हद से अब एहसास की गिरानी भी
कहाँ तक काविश-ए-इसबात-ए-पैहम
हमीं से अंजुमन-ए-इश्क़ मो'तबर ठहरी
तख़्ईल का दर खोले हुए शाम खड़ी है
संग-ए-जाँ
बू-ए-गुल रक़्स में है बाद-ए-ख़िज़ाँ रक़्स में है