ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़  कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
नामज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
अंग्रेज़ी नामZain-ul-Abideen Khan Arif
जन्म स्थानDelhi

वो पर्दा-नशीनी की रिआयत है तुम्हारी

तुम्हारी रह का रहा हम को हर तरफ़ धोका

तुम अपनी ज़ुल्फ़ से पूछो मिरी परेशानी

तेरे कहने से में अब लाऊँ कहाँ से नासेह

सौंप कर ख़ाना-ए-दिल ग़म को किधर जाते हो

रात भर ख़ून-ए-जिगर हम ने किया है 'आरिफ़'

पानी निकल के दश्त में जारी है जा-ब-जा

न आए सामने मेरे अगर नहीं आता

लाए जब घर से तो बेहोश पड़ा था 'आरिफ़'

खोया ग़म-ए-रिफ़ाक़त देखो कमाल अपना

कर दिया तीरों से छलनी मुझे सारा लेकिन

हूँ तिश्ना-काम-ए-दश्त-ए-शहादत ज़ि-बस कि मैं

गुलशन-ए-ख़ुल्द में हर-चंद कि दिल बहलाया

फ़ुर्क़त में कार-ए-वस्ल लिया वाह वाह से

दम का आना तो बड़ी बात है लब पर 'आरिफ़'

बीच में है मेरे उस के तू ही ऐ आह-ए-हज़ीं

आप को ख़ून के आँसू ही रुलाना होगा

वहशत में याद आए है ज़ंजीर देख कर

उस पे करना मिरे नालों ने असर छोड़ दिया

सब से बेहतर है कि मुझ पर मेहरबाँ कोई न हो

रात याद-ए-निगह-ए-यार ने सोने न दिया

क़ाइल भला हों नामा-बरी में सबा के ख़ाक

ना-तवानी में पलक को भी हिलाया न गया

न पर्दा खोलियो ऐ इश्क़ ग़म में तू मेरा

न आए सामने मेरे अगर नहीं आता

क्यूँ आईने में देखा तू ने जमाल अपना

क्या कहें हम थे कि या दीदा-ए-तर बैठ गए

जहाँ से दोश-ए-अज़ीज़ाँ पे बार हो के चले

इस दर पे मुझे यार मचलने नहीं देते

हम को उस शोख़ ने कल दर तलक आने न दिया

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