आप को ख़ून के आँसू ही रुलाना होगा
हाल-ए-दिल कहने को हम अपना अगर बैठ गए
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बीच में है मेरे उस के तू ही ऐ आह-ए-हज़ीं
खोया ग़म-ए-रिफ़ाक़त देखो कमाल अपना
न पर्दा खोलियो ऐ इश्क़ ग़म में तू मेरा
तुम अपनी ज़ुल्फ़ से पूछो मिरी परेशानी
वो पर्दा-नशीनी की रिआयत है तुम्हारी
सब से बेहतर है कि मुझ पर मेहरबाँ कोई न हो
न आए सामने मेरे अगर नहीं आता
तेरे कहने से में अब लाऊँ कहाँ से नासेह
क्या कहें हम थे कि या दीदा-ए-तर बैठ गए
क्यूँ आईने में देखा तू ने जमाल अपना
सौंप कर ख़ाना-ए-दिल ग़म को किधर जाते हो
हर घड़ी चलती है तलवार तिरे कूचे में