फ़ुर्क़त में कार-ए-वस्ल लिया वाह वाह से
हर आह-ए-दिल के साथ इक अरमाँ निकल गया
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वहशत में याद आए है ज़ंजीर देख कर
हूँ तिश्ना-काम-ए-दश्त-ए-शहादत ज़ि-बस कि मैं
न आए सामने मेरे अगर नहीं आता
लाए जब घर से तो बेहोश पड़ा था 'आरिफ़'
क्या कहें हम थे कि या दीदा-ए-तर बैठ गए
कर दिया तीरों से छलनी मुझे सारा लेकिन
दम का आना तो बड़ी बात है लब पर 'आरिफ़'
तुम अपनी ज़ुल्फ़ से पूछो मिरी परेशानी
रात भर ख़ून-ए-जिगर हम ने किया है 'आरिफ़'
पानी निकल के दश्त में जारी है जा-ब-जा