लाए जब घर से तो बेहोश पड़ा था 'आरिफ़'
हो गया आन के होशियार तिरे कूचे में
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जहाँ से दोश-ए-अज़ीज़ाँ पे बार हो के चले
फ़ुर्क़त में कार-ए-वस्ल लिया वाह वाह से
वहशत में याद आए है ज़ंजीर देख कर
गुलशन-ए-ख़ुल्द में हर-चंद कि दिल बहलाया
बीच में है मेरे उस के तू ही ऐ आह-ए-हज़ीं
पानी निकल के दश्त में जारी है जा-ब-जा
सब से बेहतर है कि मुझ पर मेहरबाँ कोई न हो
अच्छा हुआ कि दम शब-ए-हिज्राँ निकल गया
सौंप कर ख़ाना-ए-दिल ग़म को किधर जाते हो
क्या कहें हम थे कि या दीदा-ए-तर बैठ गए
ना-तवानी में पलक को भी हिलाया न गया
खोया ग़म-ए-रिफ़ाक़त देखो कमाल अपना