न आए सामने मेरे अगर नहीं आता
मुझे तो उस के सिवा कुछ नज़र नहीं आता
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तेरे कहने से में अब लाऊँ कहाँ से नासेह
क्या कहें हम थे कि या दीदा-ए-तर बैठ गए
इस दर पे मुझे यार मचलने नहीं देते
गुलशन-ए-ख़ुल्द में हर-चंद कि दिल बहलाया
जहाँ से दोश-ए-अज़ीज़ाँ पे बार हो के चले
वो पर्दा-नशीनी की रिआयत है तुम्हारी
क़ाइल भला हों नामा-बरी में सबा के ख़ाक
उस पे करना मिरे नालों ने असर छोड़ दिया
हम को उस शोख़ ने कल दर तलक आने न दिया
बीच में है मेरे उस के तू ही ऐ आह-ए-हज़ीं
ना-तवानी में पलक को भी हिलाया न गया