रात भर ख़ून-ए-जिगर हम ने किया है 'आरिफ़'
फ़िक्र-ए-रंगीनी-ए-अशआर ने सोने न दिया
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वहशत में याद आए है ज़ंजीर देख कर
न आए सामने मेरे अगर नहीं आता
हर घड़ी चलती है तलवार तिरे कूचे में
कर दिया तीरों से छलनी मुझे सारा लेकिन
लाए जब घर से तो बेहोश पड़ा था 'आरिफ़'
ना-तवानी में पलक को भी हिलाया न गया
जहाँ से दोश-ए-अज़ीज़ाँ पे बार हो के चले
बीच में है मेरे उस के तू ही ऐ आह-ए-हज़ीं
पानी निकल के दश्त में जारी है जा-ब-जा
क़ाइल भला हों नामा-बरी में सबा के ख़ाक
खोया ग़म-ए-रिफ़ाक़त देखो कमाल अपना