वो पर्दा-नशीनी की रिआयत है तुम्हारी
हम बात भी ख़ल्वत से निकलने नहीं देते
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अच्छा हुआ कि दम शब-ए-हिज्राँ निकल गया
ना-तवानी में पलक को भी हिलाया न गया
हर घड़ी चलती है तलवार तिरे कूचे में
लाए जब घर से तो बेहोश पड़ा था 'आरिफ़'
कर दिया तीरों से छलनी मुझे सारा लेकिन
फ़ुर्क़त में कार-ए-वस्ल लिया वाह वाह से
हम को उस शोख़ ने कल दर तलक आने न दिया
बीच में है मेरे उस के तू ही ऐ आह-ए-हज़ीं
रात याद-ए-निगह-ए-यार ने सोने न दिया
खोया ग़म-ए-रिफ़ाक़त देखो कमाल अपना
तुम्हारी रह का रहा हम को हर तरफ़ धोका
हूँ तिश्ना-काम-ए-दश्त-ए-शहादत ज़ि-बस कि मैं