ऐ गर्दिश-ए-अय्याम हमें रंज बहुत है
कुछ ख़्वाब थे ऐसे कि बिखरने के नहीं थे
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कहाँ दिन रात में रक्खा हुआ हूँ
कुछ भी देखा नहीं था मैं ने जब
छाँव से उस ने दामन भर के रक्खा है
अपने ही बस पीछे भागता रहता हूँ
खोया हुआ था हासिल होने वाला हूँ
क्या नज़ारा था मेरी आँखों में
दुख न सहने की सज़ाओं में घिरा रहता है
ये अलग बात कि चलते रहे सब से आगे
इक जैसे हैं दुख सुख सब के इक जैसी उम्मीदें
हम तुझ से कोई बात भी करने के नहीं थे
ये कैसे मोड़ पर मैं आ गया हूँ
कैसे कह दूँ बीच अपने दीवार है जब