लोग कहते रहे क़रीब है वो
हम ने ढूँडा तो दूर दूर न था
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अहल-ए-दिल ने किए तामीर हक़ीक़त के सुतूँ
हुस्न जिस हाल में नज़र आया
दर्द-ए-दिल ने ली न थी करवट अभी
मंज़िल जिसे समझते थे यारान-ए-क़ाफ़िला
मुझ को सुकूँ की चैन की पज़मुर्दगी से क्या
मरने के बअ'द कोई पशेमाँ हुआ तो क्या
शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का
वो तिरी ज़ुल्फ़ का साया हो कि आग़ोश तिरा
ये रात यूँही बसर हो गई तो क्या होगा
बुरी तक़दीर के रोने से हासिल
जुनूँ के कैफ़-ओ-कम से आगही तुझ को नहीं नासेह
तू ही बता दे कैसे काटूँ