रुमूज़-ए-इश्क़ की गहराइयाँ सलामत हैं
हमारे ख़्वाब-ए-परेशाँ किसी को क्या मालूम
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Gulzar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
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मरने के बअ'द कोई पशेमाँ हुआ तो क्या
तू ही बता दे कैसे काटूँ
लोग कहते रहे क़रीब है वो
तिरी जवान उमंगों को हो गया है क्या
मंज़िल जिसे समझते थे यारान-ए-क़ाफ़िला
वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर
साग़र-ओ-जाम को छलकाओ कि कुछ रात कटे
मुझ को सुकूँ की चैन की पज़मुर्दगी से क्या
दर्द-ए-दिल ने ली न थी करवट अभी
कितने ही फूल चुन लिए मैं ने
कारवाँ तो निकल गया कोसों