वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर
लब-ए-साहिल पे जो आए तो कगारा टूटा
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मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में
जुनूँ के कैफ़-ओ-कम से आगही तुझ को नहीं नासेह
आप पर जब से तबीअत आई
मंज़िल जिसे समझते थे यारान-ए-क़ाफ़िला
अक़्ल ने तर्क-ए-तअल्लुक़ को ग़नीमत जाना
हुस्न जिस हाल में नज़र आया
तिरी जुस्तुजू तिरी आरज़ू मुझे काम तेरे ही काम से
बुरी तक़दीर के रोने से हासिल
तिरी जवान उमंगों को हो गया है क्या
ऐ दिल तिरी आहों में इतना तो असर आए
आज फिर उन से मुलाक़ात पे रोना आया
तिरे नाज़-ओ-अदा को तेरे दीवाने समझते हैं