वो तिरी ज़ुल्फ़ का साया हो कि आग़ोश तिरा
मिल गया हो कभी आराम मुझे याद नहीं
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ऐ दिल तिरी आहों में इतना तो असर आए
याद आए हैं उफ़ गुनह क्या क्या
शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का
मंज़िल जिसे समझते थे यारान-ए-क़ाफ़िला
मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में
दर्द-ए-दिल ने ली न थी करवट अभी
साफ़ कहिए कि प्यार करते हैं
वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर
याद इतना है कि मैं होश गँवा बैठा था
अक़्ल ने तर्क-ए-तअल्लुक़ को ग़नीमत जाना
साग़र-ओ-जाम को छलकाओ कि कुछ रात कटे