मैं एक उम्र से उन को तलाश करता हूँ
कुछ ऐसे लम्हे थे जो अपनी दस्तरस में रहे
Parveen Shakir
Habib Jalib
Gulzar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Anwar Masood
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मैं रतजगों के मुकम्मल अज़ाब देखूँगा
ख़ुद अपनी सोच के पंछी न अपने बस में रहे
तिरी यादों ने तन्हा कर दिया है
नज़र में कैसा मंज़र बस गया है
पुर-हौल जंगलों की सदा मेरे साथ है
किसी भी शाख़ पर पत्ता नहीं है