तमन्ना है किसी की तेग़ हो और अपनी गर्दन हो

तमन्ना है किसी की तेग़ हो और अपनी गर्दन हो

फिर उस के बा'द यारब सर कटे नाले में मदफ़न हो

हुजूम-ए-आम हो और मुजतमा' गोरों की पलटन हो

समझ लो लौट आए हैं जो स्टेशन पे दन दन हो

कहें क़ातिल को हम महबूब अगर है ऐन नादानी

हज़र लाज़िम है ऐसे शख़्स से जो अपना दुश्मन हो

लब-ए-शीरीं अगर मा'शूक़ का क़ंद-ए-मुकर्रर है

जभी जानें कि बैठें मक्खियाँ और उस पे भन भन हो

न तुर्बत की जगह कूचे में पाई तो शिकायत क्या

गली उन की कोई तकिया है जिस में अपना मदफ़न हो

ये सब लकड़ी के तख़्ते ख़ाक में मिल जाएँ जल-भुन कर

ग़ज़ब हो जाए गर सच-मुच लहद में दाग़ रौशन हो

यही दहशत अगर दस्त-ए-जुनूँ की है तो ऐ भाई

दुपट्टा ओढ़ लो जिस में गरेबाँ हो न दामन हो

निगाह-ए-शौक़ क्या ठहरी वो गोया बेलचा ठहरी

मकान-ए-यार की दीवार में जिस से कि रौज़न हो

मचाए शोर-ओ-ग़ुल आह-ए-शरर-अफ़्शाँ करे हर-दम

यही औसाफ़ लाज़िम है तो आशिक़ क्यूँ हो इंजन हो

हमारा झोंझ फुलवारी में हो कोई नहीं कहता

यही कहते हैं यारब बाग़ में अपना नशेमन हो

अज़ल से ता-अबद लम्बी यक़ीं है टाँग भी होगी

हसीन शोख़ वो सहरा-ए-महशर जिस का दामन हो

ज़रीफ़' इंसाफ़ से कह दो वो आशिक़ है कि चूहा है

ज़मीन-ए-क़स्र-ए-जानाँ में जो ये चाहे कि मस्कन हो

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