खिड़की के रस्ते से लाया करता हूँ
मैं बाहर की दुनिया ख़ाली कमरे में
Jaun Eliya
Habib Jalib
Javed Akhtar
Gulzar
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नज़्म
किसी की देन है लेकिन मिरी ज़रूरत है
जंग के दिनों में
इंडिया
एक लड़की ने आईना देखा
कश्ती
इस दश्त-ए-बे-पनाह की हद पर भी ख़ुश नहीं
सूरा-ए-फ़ातिहा
चीज़ें अपनी जगह तब्दील करना चाहती हैं
फूल
हवा
गड़ही मेरा