हम लोग जो ख़ाक छानते हैं
मिट्टी से गुहर निकालते हैं
है शोला-ए-दीं कि शम्-ए-कुफ़्र
परवाने कहाँ ये जानते हैं
इस गुम्बद-ए-बे-सदा में हम लोग
अल्फ़ाज़ के बुत तराशते हैं
ऐ साया-ए-अब्र अब तो रुक जा
इक उम्र से धूप काटते हैं
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Wasi Shah
Gulzar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
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बुलावा
मय-ए-हयात में शामिल है तल्ख़ी-ए-दौराँ
क़िस्सा गुल-बादशाह का
ये हुक्म है कि अँधेरे को रौशनी समझो
साअतें जो तिरी क़ुर्बत में गिराँ गुज़री थीं
जुनून-ए-अव्वलीं शाइस्तगी थी
इस शहर को रास आई हम जैसों की गुम-नामी
माज़ी और हाल
एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की
रास्ते
ख़ुश जो आए थे पशेमान गए
बिल्ली