ये ख़ाल-ओ-ख़द मिरे अपने

हर एक जिस्म मिरा है, हर एक जान मिरी

ये ख़ाल-ओ-ख़द मिरे अपने, ये आन-बान मिरी

सितम तो ये है कि मज़लूम मैं हूँ ज़ालिम मैं

हर एक ज़ख़्म मुझी से हिसाब माँगेगा

हर एक दाग़ मिरी आस्तीं से झाँकेगा

हज़ार-हा मिरी पेशानियों के चाँद बुझे

हज़ार-हा मिरे लब हम-कनार-ए-ज़हर हुए

हज़ार-हा मिरे जिस्मों की डालियाँ टूटीं

हज़ार-हा मिरी आँखों की मिशअलें डूबीं

जहाँ पे आग लगी है, वहाँ खिलौने थे

जहाँ पे ख़ाक उड़ी है, वहाँ पे झूले थे

जहाँ पे सर्द हैं सीने वहाँ पे चौखट थी

जहाँ पे बंद हैं आँखें वहाँ दरीचे थे

मैं इस धुएँ में कहाँ अपनी लाश को ढूँडूँ

मैं इस हुजूम में कैसे शुमार-ए-ज़ख़्म करूँ

सितम तो ये है कि मज़लूम मैं हूँ, ज़ालिम मैं

हर एक ज़ख़्म मुझी से हिसाब माँगेगा!

हर एक दाग़ मिरी आस्तीं से झाँकेगा

(1096) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ye Khaal-o-KHad Mere Apne In Hindi By Famous Poet Zehra Nigaah. Ye Khaal-o-KHad Mere Apne is written by Zehra Nigaah. Complete Poem Ye Khaal-o-KHad Mere Apne in Hindi by Zehra Nigaah. Download free Ye Khaal-o-KHad Mere Apne Poem for Youth in PDF. Ye Khaal-o-KHad Mere Apne is a Poem on Inspiration for young students. Share Ye Khaal-o-KHad Mere Apne with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.