औरत के ख़ुदा दो हैं हक़ीक़ी ओ मजाज़ी
पर उस के लिए कोई भी अच्छा नहीं होता
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जो दिल ने कही लब पे कहाँ आई है देखो
ज़मीं पर गिर रहे थे चाँद तारे जल्दी जल्दी
भूलना ख़ुद को तो आसाँ है भुला बैठा हूँ
एक सच्ची अम्माँ की कहानी
रात अजब आसेब-ज़दा सा मौसम था
अपना हर अंदाज़ आँखों को तर-ओ-ताज़ा लगा
नहीं नहीं हमें अब तेरी जुस्तुजू भी नहीं
आज की बात
इंसाफ़
रास्ते
आँगन
कहाँ के इश्क़-ओ-मोहब्बत किधर के हिज्र ओ विसाल