देखते देखते इक घर के रहने वाले
अपने अपने ख़ानों में बट जाते हैं
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Wasi Shah
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Parveen Shakir
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आज की बात
वहशत में भी मिन्नत-कश-ए-सहरा नहीं होते
हम से बढ़ी मसाफ़त-ए-दश्त-ए-वफ़ा कि हम
मय-ए-हयात में शामिल है तल्ख़ी-ए-दौराँ
समझौता
देर तक रौशनी रही कल रात
ज़ेहरा ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है
आँगन
जुनून-ए-अव्वलीं शाइस्तगी थी
नहीं नहीं हमें अब तेरी जुस्तुजू भी नहीं
बरसों हुए तुम कहीं नहीं हो
जीना है तो जी लेंगे बहर-तौर दिवाने