दीवानों को अब वुसअत-ए-सहरा नहीं दरकार
वहशत के लिए साया-ए-दीवार बहुत है
Mir Taqi Mir
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Gulzar
Jaun Eliya
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Anwar Masood
Javed Akhtar
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जो दिल ने कही लब पे कहाँ आई है देखो
हम से बढ़ी मसाफ़त-ए-दश्त-ए-वफ़ा कि हम
गर्दिश-ए-मीना-ओ-जाम देखिए कब तक रहे
जो सुन सको तो ये सब दास्ताँ तुम्हारी है
पुल-सिरात
वो जो इक शक्ल मिरे चार तरफ़ बिखरी थी
रास्ते
इस रहगुज़र में अपना क़दम भी जुदा मिला
कोई हंगामा सर-ए-बज़्म उठाया जाए
विर्सा
आँगन
इंसाफ़