एक तेरा ग़म जिस को राह-ए-मो'तबर जानें
इस सफ़र में हम किस को अपना हम-सफ़र जानें
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रिश्ते से मुहाफ़िज़ का ख़तरा जो निकल जाता
गर्दिश-ए-मीना-ओ-जाम देखिए कब तक रहे
एक सच्ची अम्माँ की कहानी
शाम का पहला तारा
बरसों हुए तुम कहीं नहीं हो
शहर के एक कुशादा घर में
रात अजब आसेब-ज़दा सा मौसम था
हर्फ़ हर्फ़ गूँधे थे तर्ज़ मुश्कबू की थी
वो जो इक शक्ल मिरे चार तरफ़ बिखरी थी
देखो तो लगता है जैसे देखा था
अपना हर अंदाज़ आँखों को तर-ओ-ताज़ा लगा
दिल बुझने लगा आतिश-ए-रुख़्सार के होते