गर्दिश-ए-मीना-ओ-जाम देखिए कब तक रहे
हम पे तक़ाज़ा-ए-हराम देखिए कब तक रहे
Habib Jalib
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देखो तो लगता है जैसे देखा था
साअतें जो तिरी क़ुर्बत में गिराँ गुज़री थीं
बरसों हुए तुम कहीं नहीं हो
ये उदासी ये फैलते साए
रिश्ते से मुहाफ़िज़ का ख़तरा जो निकल जाता
नहीं नहीं हमें अब तेरी जुस्तुजू भी नहीं
छलक रही है मय-ए-नाब तिश्नगी के लिए
तामील-ए-वफ़ा का अहद-नामा
वो किताब
रौनक़ें अब भी किवाड़ों में छुपी लगती हैं
समझौता
कहाँ के इश्क़-ओ-मोहब्बत किधर के हिज्र ओ विसाल