ग़म अपने ही अश्कों का ख़रीदा हुआ है
दिल अपनी ही हालत का तमाशाई है देखो
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कहाँ के इश्क़-ओ-मोहब्बत किधर के हिज्र ओ विसाल
सफ़र ख़ुद-रफ़्तगी का भी अजब अंदाज़ था
देखो वो भी हैं जो सब कह सकते थे
जाँ देना बस एक ज़ियाँ का सौदा था
एक फूल सा बच्चा
हम जो पहुँचे तो रहगुज़र ही न थी
आँगन
छोटी सी बात पे ख़ुश होना मुझे आता था
तन-ए-नहीफ़ से अम्बोह-ए-जब्र हार गया
जुनून-ए-अव्वलीं शाइस्तगी थी
रुक जा हुजूम-ए-गुल कि अभी हौसला नहीं
बैठे बैठे कैसा दिल घबरा जाता है