हम जो पहुँचे तो रहगुज़र ही न थी
तुम जो आए तो मंज़िलें लाए
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कहाँ के इश्क़-ओ-मोहब्बत किधर के हिज्र ओ विसाल
बरसों हुए तुम कहीं नहीं हो
क़ुर्बतों से कब तलक अपने को बहलाएँगे हम
जाँ देना बस एक ज़ियाँ का सौदा था
ज़मीं पर गिर रहे थे चाँद तारे जल्दी जल्दी
गुल-चाँदनी
भूली-बिसरी यादों को लिपटाए हुए हूँ
देखो तो लगता है जैसे देखा था
वो साथ न देता तो वो दाद न देता तो
जिन बातों को सुनना तक बार-ए-ख़ातिर था
आँगन
समझौता