हम से बढ़ी मसाफ़त-ए-दश्त-ए-वफ़ा कि हम
ख़ुद ही भटक गए जो कभी रास्ता मिला
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गर्दिश-ए-मीना-ओ-जाम देखिए कब तक रहे
हर आन सितम ढाए है क्या जानिए क्या हो
वो किताब
नक़्श की तरह उभरना भी तुम्ही से सीखा
रात अजब आसेब-ज़दा सा मौसम था
ज़मीं पर गिर रहे थे चाँद तारे जल्दी जल्दी
शहर के एक कुशादा घर में
हर्फ़ हर्फ़ गूँधे थे तर्ज़ मुश्कबू की थी
कहाँ के इश्क़-ओ-मोहब्बत किधर के हिज्र ओ विसाल
दिल बुझने लगा आतिश-ए-रुख़्सार के होते
एक पुरानी कहानी
डाकू