इस शहर को रास आई हम जैसों की गुम-नामी
हम नाम बताते तो ये शहर भी जल जाता
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Allama Iqbal
Anwar Masood
Gulzar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1156) Peoples Rate This
देखते देखते इक घर के रहने वाले
विर्सा
डरो उस वक़्त से
कहानी गुल-ज़मीना की
अब इस घर की आबादी मेहमानों पर है
ये क्या सितम है कोई रंग-ओ-बू न पहचाने
लो डूबतों ने देख लिया नाख़ुदा को आज
डाकू
ये हुक्म है कि अँधेरे को रौशनी समझो
रात अजब आसेब-ज़दा सा मौसम था
दिल बुझने लगा आतिश-ए-रुख़्सार के होते
बस्ती में कुछ लोग निराले अब भी हैं