इस उम्मीद पे रोज़ चराग़ जलाते हैं
आने वाले बरसों ब'अद भी आते हैं
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
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विर्सा
भूलना ख़ुद को तो आसाँ है भुला बैठा हूँ
अब तक शरीक-ए-महफ़िल-ए-अग़्यार कौन है
लब पर ख़मोशियों को सजाए नज़र चुराए
एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की
डाकू
ख़ुश जो आए थे पशेमान गए
देर तक रौशनी रही कल रात
रात गहरी थी फिर भी सवेरा सा था
वो जो इक शक्ल मिरे चार तरफ़ बिखरी थी
जो सुन सको तो ये सब दास्ताँ तुम्हारी है
ज़ेहरा ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है