जिन बातों को सुनना तक बार-ए-ख़ातिर था
आज उन्हीं बातों से दिल बहलाए हुए हूँ
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एक सच्ची अम्माँ की कहानी
भूलना ख़ुद को तो आसाँ है भुला बैठा हूँ
रास्ते
शाम का पहला तारा (2)
बिल्ली
वो साथ न देता तो वो दाद न देता तो
उठो कि जश्न-ए-ख़िज़ाँ हम मनाएँ जी भर के
लो डूबतों ने देख लिया नाख़ुदा को आज
वहशत में भी मिन्नत-कश-ए-सहरा नहीं होते
दिल बुझने लगा आतिश-ए-रुख़्सार के होते
मैं तो अपने आप को उस दिन बहुत अच्छी लगी
हर्फ़ हर्फ़ गूँधे थे तर्ज़ मुश्कबू की थी