जीना है तो जी लेंगे बहर-तौर दिवाने
किस बात का ग़म है रसन-ओ-दार के होते
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अकेले होने का ख़ौफ़
दिल बुझने लगा आतिश-ए-रुख़्सार के होते
रुक जा हुजूम-ए-गुल कि अभी हौसला नहीं
तामील-ए-वफ़ा का अहद-नामा
क्यूँ ऐ ग़म-ए-फ़िराक़ ये क्या बात हो गई
जिन बातों को सुनना तक बार-ए-ख़ातिर था
लो डूबतों ने देख लिया नाख़ुदा को आज
माज़ी और हाल
रात गहरी थी फिर भी सवेरा सा था
अपना हर अंदाज़ आँखों को तर-ओ-ताज़ा लगा
सुल्ह जिस से रही मेरी ता-ज़िंदगी