जो दिल ने कही लब पे कहाँ आई है देखो
अब महफ़िल याराँ में भी तन्हाई है देखो
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आँगन
तामील-ए-वफ़ा का अहद-नामा
शाम ढले आहट की किरनें फूटी थीं
देखो वो भी हैं जो सब कह सकते थे
माज़ी और हाल
मय-ए-हयात में शामिल है तल्ख़ी-ए-दौराँ
एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की
हम से बढ़ी मसाफ़त-ए-दश्त-ए-वफ़ा कि हम
रुक जा हुजूम-ए-गुल कि अभी हौसला नहीं
ज़मीं पर गिर रहे थे चाँद तारे जल्दी जल्दी
मैं तो अपने आप को उस दिन बहुत अच्छी लगी
देर तक रौशनी रही कल रात