शब-भर का तिरा जागना अच्छा नहीं 'ज़ेहरा'
फिर दिन का कोई काम भी पूरा नहीं होता
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
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Allama Iqbal
Habib Jalib
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इस शहर को रास आई हम जैसों की गुम-नामी
नया घर
इंसाफ़
बरसों हुए तुम कहीं नहीं हो
एक पुरानी कहानी
वहशत में भी मिन्नत-कश-ए-सहरा नहीं होते
एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की
जीना है तो जी लेंगे बहर-तौर दिवाने
सफ़र ख़ुद-रफ़्तगी का भी अजब अंदाज़ था
बिल्ली
कहानी गुल-ज़मीना की