तारों को गर्दिशें मिलीं ज़र्रों को ताबिशें
ऐ रह-नवर्द राह-ए-जुनूँ तुझ को क्या मिला
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कल रात ढले
अपना हर अंदाज़ आँखों को तर-ओ-ताज़ा लगा
नया घर
हमें तो आदत-ए-ज़ख़्म-ए-सफ़र है क्या कहिए
एक सच्ची अम्माँ की कहानी
एक तेरा ग़म जिस को राह-ए-मो'तबर जानें
रौशनियाँ अतराफ़ में 'ज़ेहरा' रौशन थीं
सुल्ह जिस से रही मेरी ता-ज़िंदगी
नक़्श की तरह उभरना भी तुम्ही से सीखा
ये सच है यहाँ शोर ज़ियादा नहीं होता
जाँ देना बस एक ज़ियाँ का सौदा था
एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की