तुम से हासिल हुआ इक गहरे समुंदर का सुकूत
और हर मौज से लड़ना भी तुम्ही से सीखा
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जाँ देना बस एक ज़ियाँ का सौदा था
दिल बुझने लगा आतिश-ए-रुख़्सार के होते
वो साथ न देता तो वो दाद न देता तो
छोटी सी बात पे ख़ुश होना मुझे आता था
बिल्ली
नहीं नहीं हमें अब तेरी जुस्तुजू भी नहीं
ये ख़ाल-ओ-ख़द मिरे अपने
देखते देखते इक घर के रहने वाले
एक सच्ची अम्माँ की कहानी
जुनून-ए-अव्वलीं शाइस्तगी थी
लब पर ख़मोशियों को सजाए नज़र चुराए
वो जो इक शक्ल मिरे चार तरफ़ बिखरी थी