ये उदासी ये फैलते साए
हम तुझे याद कर के पछताए
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यूँ कहने को पैराया-ए-इज़हार बहुत है
साअतें जो तिरी क़ुर्बत में गिराँ गुज़री थीं
लब पर ख़मोशियों को सजाए नज़र चुराए
वहशत में भी मिन्नत-कश-ए-सहरा नहीं होते
कोई हंगामा सर-ए-बज़्म उठाया जाए
जो दिल ने कही लब पे कहाँ आई है देखो
बरसों हुए तुम कहीं नहीं हो
डाकू
रात गहरी थी फिर भी सवेरा सा था
ये सच है यहाँ शोर ज़ियादा नहीं होता
देखो तो लगता है जैसे देखा था