ज़मीं पर गिर रहे थे चाँद तारे जल्दी जल्दी
अंधेरा घर की दीवारों से ऊँचा हो रहा था
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Anwar Masood
Wasi Shah
Habib Jalib
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1398) Peoples Rate This
एक पुरानी कहानी
देर तक रौशनी रही कल रात
यूँ कहने को पैराया-ए-इज़हार बहुत है
भूलना ख़ुद को तो आसाँ है भुला बैठा हूँ
बुलावा
शाम का पहला तारा (2)
जाँ देना बस एक ज़ियाँ का सौदा था
एक तिलिस्मी खेल
वो किताब
लब पर ख़मोशियों को सजाए नज़र चुराए
बस्ती में कुछ लोग निराले अब भी हैं
पुल-सिरात