हरजाई

शाम लौट आई घनी तारीकी

अब न आएगी ख़बर राही की

जागी तारों की हर इक राह-गुज़ार

दूर उड़ता नज़र आता है ग़ुबार

आप की बातें हैं कितनी फीकी

किस की राह तकती हो कौन आने लगा

क्या तुम्हें भी कोई बहकाने लगा

उन की आँखें हैं कि ख़्वाबों का फ़ुसूँ

उन की बातें हैं कि उल्फ़त का जुनूँ

आप को काहे का ग़म खाने लगा

नीम-शब नींद के माते तारे

राह तक तक के किसी की हारे

किस क़दर सच्ची थीं उन की बातें

उन के साथ आई गई थीं रातें

आप के हाथ हैं या अँगारे

मैं भी समझी थी उसे दिल के क़रीब

मेरी मासूम बहन मेरी रक़ीब

क्या कहा आपा नहीं चुप रहिए

अच्छा कह डालिए कहिए कहिए

आप की आँखें हैं किस क़द्र मुहीब

सुब्ह रुक रुक के सितारे डूबे

ग़म न खाओ कि जो हारे डूबे

आपा जी भर के मुझे रोने दें

ग़म की मौजों में फ़ना होने दें

कौन साहिल के सहारे डूबे

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Harjai In Hindi By Famous Poet Zia Jalandhari. Harjai is written by Zia Jalandhari. Complete Poem Harjai in Hindi by Zia Jalandhari. Download free Harjai Poem for Youth in PDF. Harjai is a Poem on Inspiration for young students. Share Harjai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.