इम्कान

मिरे लफ़्ज़ मेरे लहू की लौ

मिरे दिल की लय जिसे नूर-ए-नय की तलाश है

मिरे अश्क मेरे वो हर्फ़ हैं जो मिरे लबों पे न आ सके

मैं अगर कहूँ भी तो क्या कहूँ

कि हनूज़ मेरी ज़बाँ में है वही ना-कुशूदा-गिरह कि थी

तू सुने तो अब्र भी नग़्मा है

तू सुने तो मौज-ए-हवा भी राग की तान है

तू सुने तो पात भी फूल भी किसी गुप्त गीत के बोल हैं

गुल-ओ-यासमन हों कि मेहर-ओ-माह

हर इक अपनी सौत-ओ-सदा में कामिल-ओ-ताम है

मिरा लफ़्ज़ नाक़िस-ओ-ख़ाम है

रहा ना-तमाम जो कह सका

जो न कह सका वही बात अस्ल-ए-कलाम है

तू सुने तो कोई अजब नहीं

कि मिरी नवा का हुनर खुले

तू सुने तो कोई अजब नहीं

कि सुख़न का सातवाँ दर खुले

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Imkan In Hindi By Famous Poet Zia Jalandhari. Imkan is written by Zia Jalandhari. Complete Poem Imkan in Hindi by Zia Jalandhari. Download free Imkan Poem for Youth in PDF. Imkan is a Poem on Inspiration for young students. Share Imkan with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.