अब्र-ए-आवारा से मुझ को है वफ़ा की उम्मीद
बर्क़-ए-बेताब से शिकवा है कि पाइंदा नहीं
Habib Jalib
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1012) Peoples Rate This
वो शाख़ बने-सँवरे वो शाख़ फले-फूले
चाँद ही निकला न बादल ही छमा-छम बरसा
इश्क़ में भी कोई अंजाम हुआ करता है
इम्कान
आँसू
निगाहों में ये क्या फ़रमा गई हो
ये आँसू ये पशेमानी का इज़हार
आँखों में निहाँ है जो मुनाजात वो तुम हो
बड़ा शहर
तू कोई सूखा हुआ पत्ता नहीं है कि जिसे
टाइपिस्ट
फ़ज़ाएँ इस क़दर बे-कल रही हैं