अन-कही बात के सौ रूप कही बात का एक
कभी सुन वो भी जो मिन्नत-कश-ए-गोयाई नहीं
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दे गया दर्द-ए-बे-तलब कोई
फ़ज़ाएँ इस क़दर बे-कल रही हैं
अजब कशाकश-ए-बीम-ओ-रजा है तन्हाई
बुरा न मान 'ज़िया' उस की साफ़-गोई का
तू कोई सूखा हुआ पत्ता नहीं है कि जिसे
वक़्त कातिब है
शम-ए-हक़ शोबदा-ए-हर्फ़ दिखा कर ले जाए
कितने इम्काँ थे जो ख़्वाबों के सहारे देखे
क्या सरोकार अब किसी से मुझे
आँखों में निहाँ है जो मुनाजात वो तुम हो
तन्हा
ऐ दिल-नशीं तलाश तिरी कू-ब-कू न थी