इश्क़ में भी कोई अंजाम हुआ करता है
इश्क़ में याद है आग़ाज़ ही आग़ाज़ मुझे
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कही अन-कही
ऐ दिल-नशीं तलाश तिरी कू-ब-कू न थी
इक ख़्वाब था आँखों में जो अब अश्क-ए-सहर है
दिखावा
इतना सोचा तुझे कि दुनिया को
हाँ मुझ पे सितम भी हैं बहुत वक़्त के लेकिन
सँभाला
तेरे दुख को पा कर हम तो अपना दुख भी भूल गए
अब जो रूठे तो जाँ पे बनती है
अपने अहवाल पे हम आप थे हैराँ बाबा
रंग बातें करें और बातों से ख़ुश्बू आए
दुख तमाशा तो नहीं है कि दिखाएँ बाबा