उन कही बात के सौ रूप कही बात का एक
कभी सुन वो भी जो मिन्नत-कश-ए-गोयाई नहीं
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Habib Jalib
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Gulzar
Wasi Shah
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
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देखें आईने के मानिंद सहें ग़म की तरह
कसक
दिल ही दिल में सुलग के बुझे हम और सहे ग़म दूर ही दूर
अधूरी
ख़ून के दरिया बह जाते हैं ख़ैर और ख़ैर के बीच
ख़ुद को समझा है फ़क़त वहम-ओ-गुमाँ भी हम ने
हिम्मत है तो बुलंद कर आवाज़ का अलम
आँखों में निहाँ है जो मुनाजात वो तुम हो
पैग़ाम
जी रहा हूँ प क्या यूँही जीता रहूँ
वो ख़्वाब क्या था कि जिस की हयात है ताबीर
बुरा न मान 'ज़िया' उस की साफ़-गोई का