वो ख़्वाब क्या था कि जिस की हयात है ताबीर
वो जुर्म क्या था कि जिस की सज़ा है तन्हाई
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ख़ुद को समझा है फ़क़त वहम-ओ-गुमाँ भी हम ने
हम
ताबा कै
शजर जलते हैं शाख़ें जल रही हैं
जी रहा हूँ प क्या यूँही जीता रहूँ
चाँद ही निकला न बादल ही छमा-छम बरसा
चाक
इक ख़्वाब था आँखों में जो अब अश्क-ए-सहर है
'ज़िया' वो ज़िंदगी क्या ज़िंदगी है
देखें आईने के मानिंद सहें ग़म की तरह
टाइपिस्ट