वो शाख़ बने-सँवरे वो शाख़ फले-फूले
जिस शाख़ पे धूप आए जिस शाख़ को नम पहुँचे
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Allama Iqbal
Gulzar
Anwar Masood
Rahat Indori
Javed Akhtar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1016) Peoples Rate This
दिल ही दिल में सुलग के बुझे हम और सहे ग़म दूर ही दूर
'ज़िया' वो ज़िंदगी क्या ज़िंदगी है
आज ही महफ़िल सर्द पड़ी है आज ही दर्द फ़रावाँ है
चाक
इतना सोचा तुझे कि दुनिया को
तेरा ग़म भी न हो तो क्या जीना
कसक
आँखों में निहाँ है जो मुनाजात वो तुम हो
उफ़्ताद तबीअत से इस हाल को हम पहुँचे
शादाब शाख़-ए-दर्द की हर पोर क्यूँ नहीं
रंग बातें करें और बातों से ख़ुश्बू आए
ख़ून के दरिया बह जाते हैं ख़ैर और ख़ैर के बीच