ये आँसू ये पशेमानी का इज़हार
मुझे इक बार फिर बहका गई हो
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कहाँ का सब्र सौ सौ बार दीवानों के दिल टूटे
उन कही बात के सौ रूप कही बात का एक
बुरा न मान 'ज़िया' उस की साफ़-गोई का
हरजाई
ताबा कै
राह-रौ
दिल ही दिल में सुलग के बुझे हम और सहे ग़म दूर ही दूर
मैं आफ़्ताब को कैसे दिखाऊँ तारीकी
आँसू
क्या सरोकार अब किसी से मुझे
देख फूलों से लदे धूप नहाए हुए पेड़