दिल के ज़ख़्मों पे वो मरहम जो लगाना चाहे

दिल के ज़ख़्मों पे वो मरहम जो लगाना चाहे

वाजिबात अपने पुराने वो चुकाना चाहे

मेरी आँखों की समुंदर में उतरने वाला

ऐसा लगता है मुझे और रुलाना चाहे

दिल के आँगन की कड़ी धूप में इक दोशीज़ा

मरमरीं भीगा हुआ जिस्म सिखाना चाहे

सैकड़ों लोग थे मौजूद सर-ए-साहिल-ए-शौक़

फिर भी वो शोख़ मिरे साथ नहाना चाहे

आज तक उस ने निभाया नहीं वादा अपना

वो तो हर तौर मिरे दिल को सताना चाहे

मैं ने सुलझाए हैं उस शोख़ के गेसू अक्सर

अब इसी जाल में मुझ को वो फँसाना चाहे

मैं तो समझा था फ़क़त ज़ेहन की तख़्लीक़ है वो

वो तो सच-मुच ही मिरे दिल में समाना चाहे

उस ने फैलाई है ख़ुद अपनी अलालत की ख़बर

वो 'ज़िया' मुझ को बहाने से बुलाना चाहे

(1384) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Dil Ke ZaKHmon Pe Wo Marham Jo Lagana Chahe In Hindi By Famous Poet Zia-ul-Haq Qasmi. Dil Ke ZaKHmon Pe Wo Marham Jo Lagana Chahe is written by Zia-ul-Haq Qasmi. Complete Poem Dil Ke ZaKHmon Pe Wo Marham Jo Lagana Chahe in Hindi by Zia-ul-Haq Qasmi. Download free Dil Ke ZaKHmon Pe Wo Marham Jo Lagana Chahe Poem for Youth in PDF. Dil Ke ZaKHmon Pe Wo Marham Jo Lagana Chahe is a Poem on Inspiration for young students. Share Dil Ke ZaKHmon Pe Wo Marham Jo Lagana Chahe with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.