वो जला कर कश्तियाँ वीज़ा तो कब का ले चुके
आने को तय्यार बैठे हैं जो फ़हरिस्तों में हैं
आ के टिक जाना यहाँ मुश्किल नहीं बिल्कुल नहीं
कार बंगला और बीवी भी यहाँ क़िस्तों में हैं
Gulzar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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सर-ए-बज़्म मुझ को उठा दिया मुझे मार मार लिटा दिया
मैं शिकार हूँ किसी और का मुझे मारता कोई और है
मुझे अपनी बीवी पे फ़ख़्र है मुझे अपने साले पे नाज़ है
घर से बाहर
कूचा-ए-यार में मैं ने जो जबीं-साई की
सफ़र हो रेल-गाड़ी का तो छके छूट जाते हैं
मैं जिसे हीर समझता था वो राँझा निकला
भारी पैर
शायर-ए-आज़म
मिरे रोब में तो वो आ गया मिरे सामने तो वो झुक गया
बिन-बुलाया मेहमान
वो भरी बज़्म में कहती है मुझे अंकल-जी