किस तरह उस से जान छुड़ाऊँ मैं क्या करूँ
मुझ को है ये ख़याल हिरासाँ किए हुए
जाने का नाम ही नहीं लेता वो नेक-बख़्त
''मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए''
Gulzar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
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Habib Jalib
Anwar Masood
Rahat Indori
Javed Akhtar
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माशूक़ जो ठिगना है तो आशिक़ भी है नाटा
बंगला और बीवी
जब भी तुझे देखा किसी बोहरान में देखा
शायर-ए-आज़म
दिल के ज़ख़्मों पे वो मरहम जो लगाना चाहे
वो भरी बज़्म में कहती है मुझे अंकल-जी
मैं शिकार हूँ किसी और का मुझे मारता कोई और है
कूचा-ए-यार में मैं ने जो जबीं-साई की
बिन-बुलाया मेहमान
लाटरी
मैं जिसे हीर समझता था वो राँझा निकला
मिरे रोब में तो वो आ गया मिरे सामने तो वो झुक गया