हमें भी ज़रूरत थी इक शख़्स की
ये हुस्न-ए-तसादुम बहुत ख़ूब है
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दीवाना-ए-जुस्तुजू हो गया चाँद
जुनूँ शोला-सामाँ ख़िरद शबनम-अफ़्शाँ
मुख़्तसर बात-चीत अच्छी है
पास-ए-पिंदार-ए-तबीअत दिल अगर रख ले तो क्या
पड़ती नहीं है दिल पे तिरे हुस्न की किरन
इसी तरह बातें किए जाइए
जुनून-ए-इश्क़-ए-सर बेदार भी है
गोश-ए-मुश्ताक़-ए-सदा-ए-नाला-ए-दिल अब कहाँ
अक़्ल कुछ ज़ीस्त की कफ़ील नहीं
गो उन्हें राह-ए-इंहिराफ़ नहीं
इतने नादिम न होइए आख़िर