पड़ती नहीं है दिल पे तिरे हुस्न की किरन
किस सम्त मेरे चाँद दरख़्शाँ है आज-कल
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इतने नादिम न होइए आख़िर
आप के साथ मुस्कुराने में
यक़ीं गर करो तुम बहुत ख़ूब है
गो उन्हें राह-ए-इंहिराफ़ नहीं
पास-ए-पिंदार-ए-तबीअत दिल अगर रख ले तो क्या
मुख़्तसर बात-चीत अच्छी है
हमें भी ज़रूरत थी इक शख़्स की
फ़िक्र-मंदी फ़ुज़ूल होती है
हम से वाइज़ ने बात की होती
दीवाना-ए-जुस्तुजू हो गया चाँद
गोश-ए-मुश्ताक़-ए-सदा-ए-नाला-ए-दिल अब कहाँ